STORYMIRROR

अंजनी कुमार शर्मा 'अंकित'

Abstract Tragedy Inspirational

4.0  

अंजनी कुमार शर्मा 'अंकित'

Abstract Tragedy Inspirational

नारी अबला नहीं

नारी अबला नहीं

1 min
135


कब तक यूँ ही नारी की अस्मत लूटी जाएगी?

कब तक अपनी ही गलियों में चलने से घबराएगी?

कब तक यूँ मशाल जलाकर न्याय माँगते जाएंगे?

कब तक यूँ ही Justice For....का नारा लगाएंगे?

क्या नारी को नरपशुओं ने इतनी अबला समझ लिया है?

क्या तुम भूल गये हो तुमको नारी ने ही जन्म दिया है?

ठहर जरा सुन, अबला नहीं ये दुर्गा है, माँ काली है,

जग का जीवन गढ़ने वाली, अद्भुत शक्ति नारी है।

कंस मरा, लंकेश मरा है, दुर्योधन का भी अंत हुआ है,

नारी से जो-जो टकराया सबका ही विध्वंस हुआ है।

ठहर, नरपशु अब नारी पर ज्यादा अत्याचार न कर,

सृष्टि की अनुपम कृति से इतना भी खिलवाड़ न कर।



Rate this content
Log in

Similar hindi poem from Abstract