नाराजगी
नाराजगी
क्यों इतने नाराज
लगते हो
क्यों कोई बात नहीं
करते हो
जिंदगी अपना हिसाब
मांगती है
क्या हिसाब करते हो
नाराज रहकर किसी से
जिंदगी नहीं
कटती है
बात करके गिरहों
को खोलो
तभी बात बनती है
नाराजगी किस बात की
ये भी तो पता चले
जिंदगी नाराजगी से
तो नहीं कटती है
नाराज रहकर लगता है
हम खुद से ही नाराज हें
वरना किसी को क्या
फरक पड़ता है
अपनों से नाराजगी
खुद को ही सजा देना है
न
ाराजगी से नुकसान
अपना ही होना है
फिर क्यों अपनों से ही
नाराज होना है
क्यों अपनों से ही
नाराज होना है
मिलो अपनों से
बातें करो
मन की गिरह
को खोलो
नाराजगी को घोलो
अपनो से अपने
को जोड़ो
खुद भी ख़ुशी से जिओ
और दूसरों को भी
जीने दो
यही फलसफा है
जिंदगी का
इसको समझो
दुसरों के लिए भी
सबक छोड़ो
नाराज रहकर
नासाज होना अच्छा
नहीं होता तबियत के लिए
फिर क्यों नाराजगी
रखते हो।