न हो
न हो
यह कलम फिसले तो तेरा नाम आए
वर्ना इन सीधी कलम में कोई इश्क का ऐतबार न हो
नहीं हमे कोई शर्मिन्दगी की नहीं हमे कोई किसीसे शिकायत
हर शख्स मोहब्बत के काबिल न हो हर शख्स वफादार न हो
जिस्म निकलती तो उतार कर बताते की हम एक जैसे है पर
ऐसा भी कोई पागल न हो ,ऐसा भी कोई दिलदार न हो
शायद ही समझ आएगा तुम कौन हो मैं कौन हूं?
इसीलिए हर कोई इतना भी मुसाफिर न हो कोई इतना भी मुन्तजिर न हो
जल्दी जल्दी में हा कर पछतावा हुआ 'राज'
सोचूँ की कोई इतना भी तेज न हो, कोई इतना भी बेहूदा शायर न हो