मुसाफ़िर हर तरफ है
मुसाफ़िर हर तरफ है
मुसाफ़िर हर तरफ है तो खतरों से खेलना हे मुसाफ़िर छोड़ दे,
खुद से प्रेम ना सही अपनों के लिए जाने की बाहर जिद छोड़ दे।
क्या जी लेगा चैन से जब घर-बार होगा तेरा सूना-सूना,
लड़ेगा कैसे इस तूफान रूपी एकांत से बता ना अकेला।
बस इतनी-सी है विनती समझ या इल्तज़ा ए गुज़ारिश,
अपनों को सलामत रखने की कर खुदा से सिफ़ारिश।
आज है ना तेरा हरियाली रूपी सुखी खुशहाल परिवार,
मत करना ऐसी नादानियां तरस जाए पाने को उनका प्यार।
सुन मत घूम व्यर्थ ही डगर-डगर बन कर ना बंजारा,
अपनों का पल दो पल का साथ भी ना मिलेगा दोबारा।