मुनिया
मुनिया
बोली मां से उसकी मुनिया
है क्यों बेरहम, इतनी दुनिया
बेटे को माने, कुल की शान
पर बिटिया की ले लेते जान।।
मां ये कब तक सहना होगा
और हमें चुप रहना होगा
कोख में भी तेरी, डरती थी
तिल तिल कर मैं मरती थी ।
पूछे मां से उसकी मुनिया
बदलेगी क्या, कभी ये दुनिया
मां समझ गयी मैं, चुप्पी तेरी
उजली राह न होगी मेरी ।।
पर मां मैं यह समझ न पायी
बेटी ही, क्यों है? हुई पराई
तोड़ दो मां! अब अपना मौन
सिवा तुम्हारे अब मेरा कौन
घूरें हैं, जब गुड़िया को तेरी
जहर उगलती, आंखें लाल
भोली भाली, गुड़िया तेरी
समझ न पाती, उनकी चाल ।।
पीछा करते बनकर काल
बन जा मां तू, अब मेरी ढाल
छुपा ले मुझे आंचल में अपने
छोड़ न मुझको, तू मेरे हाल।