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Nitu Mathur

Others

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Nitu Mathur

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मर्ज किफायत है

मर्ज किफायत है

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मैं चुन के चलूं चाहे जिस राह पर

वो बरबस तेरी ओर मुड़ जाती है 

आस पास चाहे कितना बड़ा हो घेरा

क्या कहूं अपनों की भीड़ में भी मुझे ..

तेरी महक खींच के पास बुलाती है 

हां तेरी याद सताती है...


झूम के बहार जो तुम तक आ रही थी

एक लाल गुलाब मैंने भी साथ भेजा है

हवा ने पूछा ये खास महक किसके लिए 

मगर सुना है किसी ने...

गुलाब की महक को पहचान लिया है,


तुम साहिल हो किनारा हो मेरे तूफां का

मेरे मन की खुशबू होंठों की हंसी ये नाज

कंकर भी बन गया कपास तुम्हारे आने से

एहसास ही से ये आलम है क्या होगा जब...

आ जाओगे पलट के सामने से


दूर रह के जो जी भर के बातें की 

मगर अब कुछ कहा ना जाएगा

जितने करीब मेरे ख्वाबों में थे

पास आ के भी... उतना करीब

अब न आया जायेगा


मुलाकातों का अब ना शौक नहीं

ना रोज़ मिलने की बुरी आदत है 

मन में ही पाला मुफ़्त का मर्ज मैंने

दर्द और दवा दोनों ही किफायत है,

हां किफायत है.. हां किफायत है 



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