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Lipi Sahoo

Classics

4.7  

Lipi Sahoo

Classics

मृगतृष्णा

मृगतृष्णा

1 min
611


दो बूँद आंसू क्या बहा दी

तु जन्नत ला कर

हथेली पर थमा दिया


खुद को इतना काबिल

कहां बनाया था हम ने ??

जो उसे अपने आंचल में समा लेते


नादान तो हम थे ही

हद से ज्यादा हमदर्दी तुझ में है 

इस बात का इल्म हमें कहां थी ??


अब पता चला खुसी कोई

झोलि में डाल ने वाली भीक्ष नहीं

उसे तो हासिल करना पड़ता है


कोई भला बुझा पाया 

कभी सागर का प्यास

 एक लम्बा सफ़र तय किया सिर्फ़ झूठ का


हकीक़त तो ये है

एक तु ही तु दुजा ना कोई

वही पागलपन ज़रुरी


तु आनंद की परिभाषा और परिसीमा

बाकी सब मृगतृष्णा

जैसे कस्तूरी के खोज में दीवाना


ना मैं रधा ना कबीरा

छोटी सी गुज़ारिश है मेरी

ये एहसान बनाए रखना

तुझ पे लूटा सकूं अपनी खुदी।


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