मृगतृष्णा
मृगतृष्णा
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दो बूँद आंसू क्या बहा दी
तु जन्नत ला कर
हथेली पर थमा दिया
खुद को इतना काबिल
कहां बनाया था हम ने ??
जो उसे अपने आंचल में समा लेते
नादान तो हम थे ही
हद से ज्यादा हमदर्दी तुझ में है
इस बात का इल्म हमें कहां थी ??
अब पता चला खुसी कोई
झोलि में डाल ने वाली भीक्ष नहीं
उसे तो हासिल करना पड़ता है
कोई भला बुझा पाया
कभी सागर का प्यास
एक लम्बा सफ़र तय किया सिर्फ़ झूठ का
हकीक़त तो ये है
एक तु ही तु दुजा ना कोई
वही पागलपन ज़रुरी
तु आनंद की परिभाषा और परिसीमा
बाकी सब मृगतृष्णा
जैसे कस्तूरी के खोज में दीवाना
ना मैं रधा ना कबीरा
छोटी सी गुज़ारिश है मेरी
ये एहसान बनाए रखना
तुझ पे लूटा सकूं अपनी खुदी।