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vikash singh

Romance

5.0  

vikash singh

Romance

मरेा सवेरा

मरेा सवेरा

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ये सवेरा है मेरा, ये सवेरा है मेरा

जो ख़्वाब सा सज़ा, वो बसेरा है मेरा

ज़िन्दगी की भीड़ में जो ना कटा

वो रात का कटता अँधरेा है मेरा ।।


आ इस सुबह में झूम ले,

हाथों में हाथ हो, आ थोड़ा घूम ले।

यूँ ना शर्मा अपने राज़-ए-शायर से,

आ और इन लबों को चूम ले।।

आ इधर और प्यार ले, इश्क़ की

सौगात ले,

मोहब्बत जहाँ से शुरू होती है,

उस जगह की याद ले।।


सुबह में देख उस चिड़िया को

जिसकी आवाज़ इतनी प्यारी है

जो बोलती है ऐसे, जैसे गाती कोई

सुन्दर नारी है।।

जो अपने मीत से अपना प्यार

बता रही है,

खो गया है यार कहीं, पुकार

कर उसे बुला रही है।

अपना प्यार दिखा रही हैं, और

ग़मों को छुपा रही है।

अपने प्रेम से बिछड़ने के ग़म में,

फिर सुबह ये हर किसी को जगा रही है।।


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