मोहब्बत शहर की
मोहब्बत शहर की
छोड़ा था शहर,।
ये सोचकर कि
यहाँ अब दिल,
मेरा लगता नहीं,
मगर ये शहर है
कि मुझे अब
कहीं और जाने
ही नहीं देता,
गया था मैं भी
कुछ रोज़ पहले
तमाम कोशिशों के बाद,
मगर कमबख़्त ने
ज़िन्दगी की हर बाज़ी
पलट कर रख दी, बस
इक मुझे मेरे शहर से
फिर मिलाने को।
आज फिर
मैं उसी शहर की
आग़ोश में हूँ,
जिसकी चाहत भी
अब मुझमें बाकी ना रही।।