मंज़िल का पता क्यों नहीं देते
मंज़िल का पता क्यों नहीं देते
मेरे खुदा तुम मुझे सजा क्यों नहीं देते
मेरे जलते हुए चिरागों को बुझा क्यों नहीं देते ?
दिल टूट कर भी उस शख्स के लिए धड़कता है
तुम मेरे इस दिल को पत्थर बना क्यों नहीं देते ?
मेरी आँखों में कुछ टूटे हुए ख्वाब हैं
तुम उन ख्वाबों को मेरी आँखों से मिटा क्यों नहीं देते ?
उस शख्स को भी तो मेरी अज़ीयत का पता चले
तुम मेरी अश्कों से उसका दामन भीगा क्यों नहीं देते ?
रास्तों के सिम्त न जाने कब से चल रहा हूँ मैं
तुम मुझे मेरी मंज़िल का पता क्यों नहीं देते ?
