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Om Prakash Fulara

Abstract

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Om Prakash Fulara

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मनहरण घनाक्षरी

मनहरण घनाक्षरी

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200


तेरी कोख न लजाऊँ, चाहे मैं ही मिट जाऊँ,

भारती की सेवा में ही, जीवन बिताना है।


फैला है जो भेदभाव, बढ़ा रहा नित पाँव,

पावन धरा से इसे, मुझको मिटाना है।


मार्ग से भटक रहे, आज सभी लोग यहाँ,

भटके हुओं को अब, मार्ग भी दिखाना है।


अधरों पे आज अब, हँसी नहीं खिलती है,

मुरझाए चेहरों को, मुझको खिलाना है।


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