मन से मेलजोल
मन से मेलजोल
जब से एहसासों का समंदर,
स्याही में घुलने लगा है।
मेरा मन मुझसे,
मिलने जुलने लगा है।
जब से शिकायतों का बवंडर,
कागज पर उतरने लगा है।
मेरा मन मुझसे,
मिलने जुलने लगा है।
लोग हंसी में उड़ा देते थे कभी,
मेरे जिन अल्फाजों के झुंड को,
उनके दिल में अब कहीं
ठहरने लगा है।
मेरा मन मुझसे
मिलने जुलने लगा है।
छोड़ा था अकेला बड़े दिनों से,
बेचारे मन को,
जब से दोस्ती हुई कागज कलम से,
मन खिलखिला कर हंसने लगा है।
अच्छे -बुरे सभी अनुभवों को मेरे,
बिना तर्क कोरा कागज
अब स्वीकार करने लगा है।
मन के सारे सुख -दुख का बोझ,
अब कागज का पन्ना उठाने लगा है।
मेरा मन हर रोज
थोड़ा और थोड़ा और
मुझसे जुड़ने लगा है
मुझसे जुड़ने लगा है।