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Swati Tyagi

Drama

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Swati Tyagi

Drama

मन परिंदा

मन परिंदा

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मन जैसे परिंदा, उड़ता ही जाये

जितना मैं रोकूँ, उतनी दूर जाये

कभी ख़्वाब दिखाए, हक़ीक़त छुपाये

झूठी रोशनियाँ दिखा के अंधेरों से बचाये

मन जैसे परिंदा, उड़ता ही जाये।


खुद अपनी ही क़ैद में आँसू बहाए

आसमाँ देखे, सपने सजाए

तिलमिलाए, छटपटाए, फ़िर उड़ जाए

अनदेखी दीवारों से टकरा के लौट आए

मन जैसे परिंदा, उड़ता ही जाये।


अपनी ही घबराहटों में,

तन्हाई की आहटों में

पंख सिकोड़े, खुद को समाये

दर्द छुपाए, गुमसुम सा हो जाए

मन जैसे परिंदा, फ़िर से उड़ना चाहे।।



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