मन मस्त।
मन मस्त।
हे नाथ मांग रहा तुमसे भीख दया की दीजिए।
ध्यान सदा ही बना रहे इतनी सी कृपा तो कीजिए।।
यह मन सदा अनुरागी बन चरणों में सदा ही लीन रहे।
मनमानी कदाचित कर न सकूँ इसका सदा मुझे भान रहे।।
देवी-देवता भी तड़प रहे गुणगान तुम्हारा सुनने को।
मोह-माया से जकड़ा मानव बेचैन है तुमको पाने को।।
यह पुण्य भूमि है संतों की जहां सत्संग की बहती धारा है।
यहाँ धर्म-संप्रदाय की बात नहीं तुमने तो सभी को तारा है।।
मन मधुकर बन व्याकुल है मधुपान तुम्हारे चरणों का।
"नीरज" "मन-मस्त" हुआ बैठा करता ध्यान तुम्हारे चरणों का।।