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Rani Sah

Inspirational

4  

Rani Sah

Inspirational

मन के काले बादल

मन के काले बादल

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मन के काले बादलों को हटने दे जरा

क्यों तेरे भीतर है इतना अंधकार भरा


प्रकृति की सुंदरता में खुद को ढाल जरा

कुदरत से बढ़कर नहीं कोई श्रृंगार यहाँ


पलकों के सारे ख्वाबों को फिर आजाद होने दे

जो सूखे पड़े है इरादे तेरे उसे हरा भरा आज होने दे


हर तलब को समझ ऊँचाई तक प्रतिभा होने दे

है मन में उत्साह अगर तो वक़्त की धार में दुगुना होने दे


जो तमाशे अक्सर मंडरा रहे हैं आस पास तेरे

एकांत पथ पर उसे जलती सुलगती आग होने दे


मनचाहे आशियाने की खातिर मुकद्दर से तकरार होने दे

रख करीब हौसले को अपने मंज़िल से रूबरू हो जा 


मुकर रहे है अगर तो जमाने को भी अपने खिलाफ होने दे

धूमिल पड़ी बनी है तेरी मासूम मुस्काने


अपनी हर अदा को इस फ़लक का गुलजार होने दे

क्यों समेट रहा है खुद को आँसुओं के गर्त में


क्यों बेबस निराश उलझा पड़ा है 

अच्छे बुरे के अर्थ में जो ओढ़ रखी है चादर 

तेरे रूह ने उस चादर को खामोशी से हटा



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