मजदूर
मजदूर
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सीने में जख्म लिए
चेहरे पर मुस्कान,
माथे पर पसीना
करता नवनिर्माण।
अपनों से दूर
सपनों में खोकर
गीत नया गाता
भरपेट नहीं खा पाता।
टूटता-बिखरता
पर भय नहीं खाता
वह सीधा-साधा
जग मजदूर उसे कहता।
वो आज भी रंक बना
कितने राजा पैदा हुए
पर उसने अपमान ही सहे
दर्द अपना किसी से न कहा...?