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Shailaja Bhattad

Others

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Shailaja Bhattad

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मजदूर

मजदूर

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चिलचिलाती धूप, कड़ाके की सर्दी।

यही सब तो है मेरी वर्दी।

 रिसते घाव पत्थर की छाँव।

 बुझा न पाए इरादों की गर्मी।----

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स्वेद बूंदों में बह गए ख्वाब मेरे। 

 महलों तले ढह गए झोपड़े मेरे।

 ढोता बोझ तपती सड़कों पर।  

 आंखों में संवरते देश के सपने मेरे।

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घुटने नहीं टेके, 

उम्मीद नहीं छोड़ी।

 कर्मठ रहा, 

मिले चाहे भाव कोड़ी।

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 चिलचिलाती धूप भी डगमगा न सकी।

 मेहनतकश की हस्ती मिटा न सकी।

 तराशी ख्वाहिशें सबकी।

  एक अपनी तराशी न जा सकी।

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तपती सड़कें छालों भरे पाँव।

 रिसते घाव दूर मेरा गाँव ।

 हाड़ तोड़ मेहनत बोझ अनगिनत।

 नहीं मिली कहीं कोई छाँव। ।-----

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बोझा ढोते हाथ ।

घुटने टेकते साथ ।

हाड़ तोड़ मेहनत।

 शोषण करते नाथ।

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घर से दूर।

 है मजबूर ।

पत्थर तराशता।

खाली पेट मजदूर।

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 उम्मीद रह गई अधूरी।

 बन गई अपनों से दूरी।

 तपती सड़कें, कड़ाके की सर्दी।

 कर रहा सबकी मांगें पूरी। 

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तेज धूप को पीता है।

तपती सड़कों पर जीता है।

 सर्दी को पहन।

 अंगारों को सहता है।

  मजदूर है बस मजदूरी करता है।

   शोर मचाती दुनिया में।

    कितना खामोश रहता है।

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उपकार का दामन थामे बढ़ रहा आगे।

 मेहनत सीने से लगाए हरदम भागे।

 गम विषाद अमीरों के चोंचले।

 वह तो चिलचिलाती धूप में भी सबसे आगे।

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माना कि अभावों का कहर है।

 चंद रुपयों में गुजर-बसर है।

 चैन की बंसी बजाते।

 बीत रहा हर पहर है।


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संभावनाएं अनंत है।

 मेहनत का नहीं कोई अंत है।

 इरादों की तेज धूप में।

झुलसती दुर्भावनाएं अनगिनत हैं।


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