मजदूर दिवस
मजदूर दिवस
प्रिय डायरी,
हाँ, मैं वही मजदूर हूँ,
जिसके बने आशियाने में तुम रहते हो,
गाँव छोड़कर दो रोटी के लिए,
शहर आया कमाने के लिए
पर अफसोस तो देखो मेरे मालिक
ना शहर अपना हुआ
ना गाँव ही मेरा बना,
शहर तो सिर्फ़ कहने के लिए पैसे वालों का है
हकीकत तो वो तो कंगाल निकले,
कितने मीलों पैदल चला अपने
गाँव की ओर,
क्यों मनाते हो 'मजदूर दिवस',
क्यों अहसान करते हो एक छुट्टी देकर,
ये छुट्टी भी ले लो
और मत कहो हम बंधुआ हैं
जी तोड़ मेहनत तुम लोगों के लिए की
पर अफसोस जाते हुए भूखे मेरे बच्चों को
भी नहीं देखा !