महिला सशक्तिकरण
महिला सशक्तिकरण
अपना वजूद भुलाकर
कितनी रवायतें निभाती है ?
महिला वो है जो एक
मकान को घर बनाती है।
खुल कर उड़ान भरने के लिये
एक आसमान ही तो मांगती है,
उसे पंख नहीं चाहिए तुमसे
सिर्फ बंधन मुक्ति मांगती है।
देवी कहकर बुलाते हो,
शीर्ष पर ले जाकर बैठाते हो,
फिर घर घर क्यों घरेलू हिंसा,
उपेक्षा का शिकार ,भ्रूण हत्या, करते हो।
ये दोगलापन छोड़ दो,
मुझे इंसान ही समझ लो।
न 'दगा' दूंगी कभी तुमको
मुझे अपनी 'ताकत 'बना कर तो देखो।
स्त्रियों का जिस जगह
सम्मान होता है,
वो घर हर बला से
महफ़ूज रहता है।
जहाँ घर की लक्ष्मी
मुस्कराती है,
वहां सुख सम्पत्ति
नियमित आती है।
सशक्तिकरण की बात ही
तब होती है,जब एक
महिला को बेवज़ह, बेहिसाब
सिर्फ महिला होने की कीमत चुकानी होती है।