महिला दिवस
महिला दिवस
कौन कहता नारी कमजोर होती
आज भी उसके हाथ में दो-दो
परिवार चलाने की हिम्मत होती
स्कूल वो जाती
दफ्तर भी जाती है
अपने परिवार के कंधों से कंधा
मिलाकर अपने पति का साथ देती
कौन कहता.....
वक्त आने पर भूखी खुद सो जाती
काट अपना पेट
4-4 बेटों को पाल परोस कर
बड़ा कर देती
कौन कहता नारी ...
वक्त आने पर खुद दुर्गा बन जाती
अपने शरीर के लिए खुद
चांडाल काली का रूप ले लेती
उनसे चलता परिवार का नाम
महकती फूलों की मिठास
उनसे ही दो -दो कुलों की पहचान
कौन कहता .....
हजारों बार गिरती
हजारों बार उठती
हजारों मुश्किल हो रास्तों में
हर किसी का सामना
दिल और दिमाग से करती
कौन कहता.....
सबकी जिम्मेदारी का बोझ
खुशी- खुशी से निभाती
खुद रोती कभी किसी से
कुछ ना कह पाती
एक बार नारी की जिंदगी
जीकर तो देखो
मर्द होने पर घमंड टूट जायेगा
हौसला बनो तुम उस नारी का
जिसने हर जुल्म को हँसते -हँसते
तेरे ही खातिर सहन करती
कौन कहता....
चाहती तो कह देती
मुझसे हर चीज बर्दाश्त नहीं होती
नहीं होता तेरा हर दर्द सहना
उसके ऐसे कहने पर
फिर तू ही अपने बोझ तले रोता!!
कौन कहता .....