मगर हम तो यह न जाने..
मगर हम तो यह न जाने..
लिखे न लिखे क्या फर्क पड़ता हैं
वैसे भी हमने बंद कर रखे हैं
दिल के दरवाजे हो गए गूंगे बहिरे
हम तो ठैरे फ़क़ीर आदमी , क्या तुम्हे ?
हमें नहीं चाहिए नौकर - चाकर बंगला गाड़ी
नही चाहिए रोजगार नौकरी खुशहाल जिंदगी
हमें भी चाहिए अब फकीरी ही फकीरी
भाड़ में जाये जनता, काम अपना बनता
क्या फर्क पड़ता हैं महंगाई बढ़ गई
बेरोजगार हो गए ,शादी नहीं कर पा रहे
कोई न कोई इलेक्शन रहता ही हैं ना ?
खाना - पीना , ढाबा सजाना बस हो गया ...
क्या हम आजाद हुए ? क्या होगा भविष्य
हम कैसे जियेंगे ? कोरोना कब ख़त्म होगा ?
फालतू के सवाल से दिमाग मत खावो हमारा
पापा कहते नाम करेगा बेटा, मगर हम तो यह न जाने।