मेरी मिल्कीयत के वारिस
मेरी मिल्कीयत के वारिस
हर रोज़ लिखती हूँ ढ़ेरों कविताएँ
हज़ारों अहसास उड़ेलती हूँ
लाखों शब्द सजा कर कागज़
के सीने पर
असंख्य आरज़ूएं कहती हूँ !
विषय अनेक, किस्से लाजवाब
उसको चुरा कर उसे ही
लिखती हूँ !
इतने सारे नयेपन के बीच
लिखने की वजह और
मेरी हर कविता और
कहानी का किरदार बस एक,
तुम
पर इसे मेरी लाचारी समझूँगा
या बदनसीबी तुम्हारी
मेरी बेशुमार चाहत की
मिल्कीयत के तुम इकलौते
वारिस और ,
तुम्हें इस बात का इल्म तक नहीं।।