मेरी कथा, मेरी कविता
मेरी कथा, मेरी कविता
1 min
12K
कोई समझ नहीं पाया
चाहे गुस्सा करूँ या शांत रहूँ
कोई समझ नहीं पाया ।
अकेले रहने की आदत थी
पर भीड़ में घुलने का मन भी था
गई थी....पर....
फिर लौट के, वापस आना पड़ा।।
साथ देने के लिए साथी मिला
वो भी ऐसा मिला, एक नासमझ वाला
जो गुस्सा तो खामोशी में सुन लिया
पर खामोशीयों को ऐवे ही जाने दिया।।
सवाल तो पलटन भर के है
उत्तर ढूंढने की खोज मे हूँ
अकेले जिन्दगी के रास्तों में
मकसद का सफ़र गुज़ार रही हूँ ।।