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Suchismita Behera

Others

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Suchismita Behera

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मेरी कथा, मेरी कविता

मेरी कथा, मेरी कविता

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कोई समझ नहीं पाया

चाहे गुस्सा करूँ या शांत रहूँ

कोई समझ नहीं पाया ।


अकेले रहने की आदत थी

पर भीड़ में घुलने का मन भी था

गई थी....पर....

फिर लौट के, वापस आना पड़ा।।


साथ देने के लिए साथी मिला

वो भी ऐसा मिला, एक नासमझ वाला

जो गुस्सा तो खामोशी में सुन लिया

पर खामोशीयों को ऐवे ही जाने दिया।।


सवाल तो पलटन भर के है

उत्तर ढूंढने की खोज मे हूँ

अकेले जिन्दगी के रास्तों में

मकसद का सफ़र गुज़ार रही हूँ ।।



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