मेरी कलम
मेरी कलम
कलम मेरी सच्ची सहेली
तो कभी मेरी हमदर्द बन जाती है....
जो तुम ज़माने से छिपाते हो
वो जज्बात मैं लिखती हूँ....
अक्षरों में अपने अहसास
परोस देती हूँ.....
चमन में खिले फूलों के
सौगात लिख देती हूँ.....
कोशिश करती हूँ लिख दूँ
सितारों की बातें गुपचुप....
या लिख दूँ पंछियों की
चहचहाहट की भाषा.....
या वो अनकही बातें
पढ़ती हूँ तेरे आँखों में कभी.....
यादों से आती आवाज़ें
शोर मचाती है कुछ ऐसा.....
लिख पन्नों पर उसे
तसल्ली कर लेती हूँ......
मन ही मन खुश होकर कभी
लिखती हूँ ख्वाइशें अधूरी....
कभी चाहते जो थी
मन में दबी दबी...
हां मेरी हमदर्द बन
कलम ही तो
साथ निभाती तन्हाइयों में
बन हमजोली
खेलती संग मेरे।