मेरी अर्जी।
मेरी अर्जी।
वो मुझे चाहे या ठुकराए, फर्क पड़ता उनकी मर्जी पर
कूद पड़ा मैं रणभूमि पर, देखूँ क्या हो मेरी अर्जी पर
जैसे लहरें उठती सागर में, उसी में खेला करती हैं
मैं तो भंवरा हूं तेरे पुष्प का, रस पीने को बेकरार करती है
तेरे रोम रोम में समाया रहता हूं फिर भी कुछ तमन्ना बाकी है
एक दिन तुम भी समझ सकोगी, जैसे जाम पिलाता साकी है
दर्द दिल का अब खत्म नहीं होगा, आंखों से आंसू बहते हैं
सब कुछ तुम पर वारा है, खामोश लब यह कहते हैं
एहसास एक दिन तुमको भी होगा, मजबूर होगी अपनाने को
दौड़कर तब मुझे गले लगाओगी, दिखला दूंगा इस जमाने को।