मेरे स्मरण की आकाशगंगा
मेरे स्मरण की आकाशगंगा
मेरे स्मरण की आकाशगंगा में
तुम्हारी स्मृतियाँ परिभ्रमण करती रहती हैं।
यूँ तो मैं गठरी बना उन्हें
मन की काल कोठरी में बंद रखती हूँ,
पर....
मेरे संयम की गिरह ढीली होते ही
वो कभी मेरे अधरों पे मुस्कान बन
आराम से पसर जाती हैं
और कभी....
नयनों के कोरों से झरना सा गिर के,
मेरे तकिए को भिगो जाती हैं।
कभी पसर जाती हैं मेरे आँगन में
गुनगुनी धूप बन
और कभी....
पूस की रात मेरी हथेलियों में
गर्माहट भर जाती हैं।
तुमसे जुड़े संस्मरणों से
महक उठता है
मेरा अंतःकरण
औररररर...
अक़्सर परिपक्वता की परिभाषा से
परिभाषित करती हूँ मैं
जीवन मरण।