मेरे पापा और मैं
मेरे पापा और मैं
मैं भीग गई पापा कहते ही,
आंखों में सागर का भान हुआ।
दिव्य रूप के संग सलोने,
चेहरे का अहसास हुआ।
चश्मे के पीछे से आँखें,
कितना कुछ कह जाती हैं।
पापा नाम लिया होठों ने,
आँखें भीगी जाती हैं।
मस्तक पर अनुभव की रेखा,
हाथों में आशीष भरा।
कैसे पापा तुमने मुझ को,
विदा किसी के साथ किया!
शहजादी थी पितृ भवन की,
इठलाती फुलवारी थी।
अंगना द्वारे पर मैं पापा,
हिरनी बन मतवाली थी।
मुट्ठी में दिल आ जाता है,
पलट के देखा जब भी तुम को।
घर से स्टेशन का रास्ता,
अग्निपथ बन जाता मुझ को।
कैसे पापा लिख पाऊँ मैं,
बात सभी अपने इस मन की,
सच तो यह है गीली रहती,
भावनाएं इस अंतर्मन की।
केवल इतना कह पाती हूँ,
मुस्काते रहना तुम पापा।
ख़ुशियों से महकाये रखना,
अपने मन का कोना -कोना।
मैं जब भी आउंगी घर में
उस कोने में छुप जाऊंगी,
जहां खुशी की धूप खिली हो,
उसको पाकर हर्षाउंगी।
झूठी नहीं ...उमंगे सच्ची
होठों पर बिखराये रखना,
पापा मेरे मुझे सदा तुम,
पहले से मुस्काते मिलना।
प्लीज पापा,