मेरे हमसफ़र
मेरे हमसफ़र


2212 2212 2212 2212
सफ़र-ए-हयात में साथ चलना तुम ओ मेरे हमसफ़र,
चाहे हो राहों में भी कितनी ऊँची नीची सी डगर।
ऐलान कर देते हिकायत अपनी लिखकर फ़लक पे,
यूँ लैला-मजनू की तरह ही दास्ताँ होगी अमर।
कर ले मुझे क़ैद तेरे दिल के कैमरे में इस तरह,
आजा समा जा मुझ में तू, कोई भी ना हो बेख़बर।
देखो हमारे इश्क़ की देने गवाही उस फ़लक,
से आफ़ताब भी इस जमीं पे कैसे आया है उतर।
ये ख़ुश्क होंठों की बुझे ना प्यास ऐ मेरे सनम,
आके मुझे तू चूम ऐसे, जैसे साहिल चूमे लहर।
15th October 2021 / Poem 42