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Amit Kumar

Abstract Romance Classics

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Amit Kumar

Abstract Romance Classics

मेरे हमसफ़र

मेरे हमसफ़र

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जब उन्मूलन किया

जीवन मूल्यों के अनुकरण का

तब कौन साथ रहा

एक साये की तरह

वो संग-संग जो

हवाओं सा ताज़ा बनकर

मेरी हर दौड़-धूंप को

अपनी ताज़गी से

सराबोर कर मेरी सारी थकान

पल में हर लेता था


सपनों में भी जो

अपना बनकर

सपनों से बेगानों को भी

पल में अपना कर लेता था

नदी के बहाव की तरह

जो क्यारियों में भी

भरपूर आनंद देता था 


वो मेरे हमसफर

तुम्हीं तो थे

जो मेरे कोरे निर्मूल सफ़र को

अपने होने से समूल 

अर्थ देता था

बहारों की खुशबू सा

सुगन्धित जो कुछ भी

महक रहा है फ़िज़ा में


वो मेरे हमसफ़र का 

नूर ही तो है

जो अंधेरों में आसमान का चांद है 

जो दिन के उजालों में

उम्मीद का सूरज बनकर

महत्वकांक्षी समंदर सा

भावनाओं की नैया को

मन के मन्थन में

मथता रहता है।


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