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मेरे अश्क़ को दुपट्टे से पोछती

मेरे अश्क़ को दुपट्टे से पोछती

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वो पास होती तो 

मेरे अश्क़ को

दुपट्टे से पोछती 

इन आँसुओं को देखकर 

खुद को बहुत कोसती।

 

खुद जलती मेरी

तड़प की आग में, 

दर्द कम हुआ क्या 

यही बार-बार मुझसे पूछती।

 

वो पास होती तो 

मेरे अश्क़ को

दुपट्टे से पोछती !


दफन कर देती 

अपनी हर एक ख्वाहिश 

सिर्फ मेरे बारे में 

सोचती 

मेरे दर्द-ऐ-दिल को देखकर

अपने जिस्म में खंजर 

घोपती।


इन मुश्किल हालात में 

वो मेरे हाथ थामती

मैं रोता बहुत औऱ खुद 

आँसू बनके बहती 

वो पास होती तो 

मेरे अश्क़ को

दुपट्टे से पोंछती !


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