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Minakshi Prakash

Abstract

4.0  

Minakshi Prakash

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मेरे अल्फाज

मेरे अल्फाज

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क्या कहे, कैसे कहे

बाते हज़ार है, शब्दों के साज की

मेरे मन के आवाज की

तेरे मन के अल्फाज की

कुछ कही सी, सुनी सी 

प्राकृतिक के गोद से,

चुनी सी,

कुछ बीतते हुए पलों की

सरसराती सी, चहक सी

कुछ आने वाले कल के

महकती सी ललक सी

यूं ही 

कभी सोचती हूँ कि

क्या कहे , कैसे कहे

पर जानती हूँ मैं 

कि शब्दों के साज के 

अपने अंदाज है,

रुकते नहीं जब देती परिस्थियां

आवाज है l



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