मेरा शहर
मेरा शहर
हर गली अदब से मुस्कुराया करती है....
मेरे जे़हन की रूह जो यहाँ बसती है.......
कहाँ है यहाँ अकेलापन और सूनापन....
नवाबों की यह गलियाँ इन शब्दों से किनारा करती है..
फिजाओं में खूबसूरती है बेशुमार......
खिलखिलाते हैं चेहरे हर तरफ मोहब्बत की पुकार...
जन्नत में भी नहीं मिलेगा सुकून- ए- लखनऊ सा शहर
वो आबोहवा जो बहती है दिलों पर करती है ऐसा असर..
जिक्र कशिश-ए-लखनऊ का जब आगाज़ हो जाता है..
कसम से दिल हजरतगंज रूह अमीनाबाद हो जाता है..
इबादत हर मंजर की यही कहती है कुछ भी ले लो..
बस एक बार अपने शहर लखनऊ बुला लो..