Become a PUBLISHED AUTHOR at just 1999/- INR!! Limited Period Offer
Become a PUBLISHED AUTHOR at just 1999/- INR!! Limited Period Offer

मेरा ख़त मिले....!

मेरा ख़त मिले....!

1 min
285


तुझे ही फुर्सत न मिली, मेरे ख़त को पढ़ने की.... 

हम तो हर रोज लिखा करते थे.... 

एक उम्मीद थी जो मेरे हौसलों को बुलंद करती थी.... 

की शायद कभी तो उसे मेरा ख़त मिले....


उसे ज़ब भी देखता तो लगता जैसे सुबह का नया सूरज उग रहा हो.... 

होंठों पे मुस्कान मानो मेरा ख़त उसे मिल गया हो.... 

पता तो सही था, फ़िर भी समझ नहीं आता की उसे मेरा ख़त मिला ही नहीं.... 

या मोहब्बत ही नहीं थी उसे हमसे....


आज भी दर्द-ए-दिल के जख़्मों को सिया करते थे.... 

जिंदगी से कोई गिला-शिकवा नहीं जिया करते थे.... 

तुझे ही फुर्सत न मिली, मेरे ख़त को पढ़ने की.... 

हम तो हर रोज लिखा करते थे....!


Rate this content
Log in

Similar hindi poem from Tragedy