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Brijlala Rohan

Tragedy Others

4.4  

Brijlala Rohan

Tragedy Others

मेरा चाँद लौटकर न आया !

मेरा चाँद लौटकर न आया !

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आज करवा-चौथ का व्रत है आया, मैंने भी अपना थाल सजाया ।

ढूंढ रही हूं अपना चाँद, लगाकार सच्चे दिल से ध्यान।

उन्हें जरा भी भान न आया ! कैसे जी रही हूं, मैं! घूँट-घूँट विष पी रही हूँ, मैं!

फिर भी उस निष्ठुर- नियति को ध्यान न आया !

मेरा लौटकर चाँद न आया !पूछ रही है बिटिया प्यारी,

पापा की परी, माँ की राजदुलारी! 

माँ! बताओ ना माँ ! पिताजी लौटकर कब आएंगे??

कब अपनी बिटिया रानी को अपने साथ ले जाएंगे!

सांत्वना दे- देकर माँ रोज उसे समझाती हैं!

बेटा जल्द ही तुम्हारे पापा अपनी लाडो बिटिया के पास आएंगे।

साथ में ढेर सारे खिलौने और मिठाइयाँ भी लाएंगे।

माँ हो जाती उस समय निरुत्तर! जब बेटा भी पिता से मिलने को आ जाता जिद पे उतर ।      

विरह की अग्नि में, मैं दिन- रात जल रही!

कमर टूटी हुई मगर आपके यादों के संग ही चल रही !

किससे कहूं दिल का हाल मैं, अपना ? किससे दुख - सुख की बातें कहूं ?    

मैंने सदा भला ही चाहा दुनिया का !

तो फिर ये न जाने मेरे कौन से कुकर्मों का जहर भरी फल ये आया ! 

कब से आस लगाए बैठी हूं, देख रही अनंत आकाश! तब भी वो न आये पास।

सच में मेरा अब तक लौटकर चाँद न आया ! 

उम्मीद अभी न छोड़ी हूं ,न विश्वास कब भी डगमग होगा !

देखेगी ये दुनिया जब चाँद चलकर खुद चलनी में मुझे अपना दीदार देगा।

दर्शन देकर अपनी, मुझसे मेरा व्रत तुड़वाएगा ।

तेरी दी हुई ही अमानत के साथ जी रही, मैं! हँस- हँसकर आँसु पी रही, मैं! 

फिर भी तुझे मेरा जरा भी ध्यान न आया ! लौटकर मेरा चाँद न आया !


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