मदिरा
मदिरा
मदिरापान को मदिरालय अक्सर पाँव चला जाता
जाता मदिरालय को तो वह लौटकर मदिरालय आता।
कार्यालय अब मदिरालय घर-बार अब मदिरालय
मदिरा में कुछ यूं घुला खुद बन गया मैं मदिरा।
मदिरालय ही मंदिर है मदिरा ही अब ईश्वर है
भक्त उसका प्यासा है पान करेगा मदिरा का।
मदिरा ने मेरी तृषा बढ़ायी पान करूँ मैं मदिरा का ।
मदिरा ने मेरी क्षुधा बढ़ायी भोज-ग्रहण बस मदिरा का।
मदिरा ने अंग्रेज बनाया हँसना मदिरा ने ही सिखाया।
मदिरा से सौ बातें करता भ्रमण भी उसने खूब कराया।
मदिरा ने मुझे खूब गिराया गिरा तो उठना सीख गया।
दुनिया के दो चेहरे हैं मदिरा ने मुझे यही दिखाया।
मदिरा ने मुझे सत्य दिखाया मदिरा ने इंसान बनाया।
मदिरा ने मुझे धूल चटाया फिर भी सच्चा दोस्त बनाया।
मदिरापान को मदिरालय अक्सर पाँव चला जाता
जाता मदिरालय को तो वह लौटकर मदिरालय आता।
(शब्दार्थ: तृषा=प्यास, क्षुधा=भूख)