" मछलियों के भाग्य "
" मछलियों के भाग्य "
रो रहीं थीं
मछिलियाँ
तड़प रहीं थीं
गर्मियों की तपीश से
आखिर जाएँ कहाँ
मिलती नहीं
राहत यहाँ
भय लगा था
बक्र दृष्टि
का यहाँ ताँता लगा था
पर आज देखो
प्रकृति ने
वर्षा का उपहार
हमको दे दिया
लबालब भर गए तालाब मेरे
अब हमें
कुछ और दिन राहत
मिला
खिल उठे हैं भाग्य मेरे !