"मच्छर "
"मच्छर "
गरमी में क्यों आ जाते हो, तुम घर के अंदर?
छोटे-बड़े कटखने दुश्मन,ओ काले मच्छर!
भिन-भिन का ही राग सुनाकर, करते हो जी बोर-
धोखा देकर डंक मारते, मिले जहां अवसर.
ऊंचे उड़कर हमें चिढ़ाते,मौका मिलते ही छिप जाते-
ताली मार मारकर हम भी सचमुच बेहद ही थक जाते,
ढूंढ तुम्हें पाते भी हम ना,तंग करो जमकर-
मच्छरदानी नहीं लगाते,ऑल आउट से रखते नाते.
गरमी में क्यों आ जाते हो, तुम घर के अंदर?
होवें गांव शहर हैरान,निश-दिन छेड़ो अपनी तान
मलेरिया से तंग थे पहले डेंगू ने अब ली है जान
बात मान लो उड़ जाओ ,परदेस ठिकाना कर लो-
खून न चूसो,डंक न मारो,तन-मन हैं परेशान.