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मौत की महफ़िल

मौत की महफ़िल

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सजाकर मौत की महफिल तेरे दर पे हम आये हैं

ना पर्दा हो कफन का अब सजी अपनी चिताएँ हैं।


पड़ी मैय्यत दिले घर में उठाओं मन के काँधे से

सजाओ ना कोई सेहरा मिली मौतें वफाए हैं।


सजी है क्या अजब महफिल तेरे शमशाने नगरी में

मेरी नगरी में तो छाई दिले गम की घटाए हैं।


न ले आगोशे महफ़िल में कही दिल न धड़क जाये

रगों में है सिहर मौते इधर बिरही हवाएँ है।


तेरे दर पे समर्पण है मेरा सब कुछ ये अर्पण है

मिले जो आज हम तुमसे हुए अपने पराये है।


कसक मन में बस इक मेरे तू आई घर में चुपके से

न देखा जन्नते माँ को नयन में नीर छाये है।


बहन बैठी रही घर में सजाकर प्रेम की राखी

रही रोती ले राखी को गमे आँसू बहाए हैं।


मिलन की अपनी ये कीमत रही बेमोल महफ़िल में

तेरे महफ़िल की कीमत तो दे जाँ अपना चुकाए हैं।


हम आये जो तेरे दर पे सुकूने दिल ने पाया है

रहे न अब कोई बंधन तेरी जुल्फें घटाएँ हैं।


बया होगा मोहब्बत ये शिवम शहजादी के संग में

मिलन होगी चिता सेजे अनल इश्के लगाये हैं !


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