मौत भी तो ज़िंदा है
मौत भी तो ज़िंदा है
चुपके से "सुबह" आकर हमें एहसास कराती है, की हम अभी तक ज़िंदा है तब एहसास होता है, की हां; अभी भी हम ज़िंदा परिंदा है !
उस वक़्त ये ज़िन्दगी बहुत प्यारी लगती है और सोचते हैं, की अच्छा है; की हम अभी तक ज़िंदा है !
ज़िन्दगी की ठोकरों और परेशानियों से जूझते हुए लगता है, की मौत को क्या हो गया है, आती क्यों नहीं ; वो क्यों इतनी शर्मिंदा है ?
हम इंसानों की यही कहानी है सुख में ज़िन्दगी और दुख में मौत को याद करते हैं, जैसे की ज़िंदगी और मौत में हमारा बस चलता है !
इंसान मतलबी होता है, खुशियों में अक्सर भगवान थोड़ी देर में याद आते हैं लोगों को, पर दुख में भगवान ही दिखता है !
हमारी ज़िन्दगी के फैसले ऊपरवाला ही लेता है, फिर भी हमें लगता है, की हम हमारे फैसलों पर ही ज़िंदा है !
घमंड कुछ लोग इतना दिखाते हैं, जैसे ज़िन्दगी भर यहीं दुनिया में रहेंगे वो, भूल जाते हैं इस दुनिया में किरायेदार हैं हम, बस किरायेदार के रूप में ही ज़िंदा है !
जिस दिन ज़िन्दगी का किराया नहीं दिया, बस तब तक ही मौत शर्मिंदा है, क्यूंकि याद रखना मौत भी तो ज़िंदा है !