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Anurag Negi

Abstract

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Anurag Negi

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मौसम के एहसास में

मौसम के एहसास में

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खिली खिली धूप है, आसमा की छाव में,

झूम रहें हैं पंछी अब, खुली धरती की नाव में,

इस खिली धूप की फूलो को भी प्यास हैं,

ना जाने कौन, कहाँ, किसकी याद में उदास है ।


नरम हो गयी ये हवा अब, पानी के शीतल लहर में,

दूर कोई खड़ा पनघट में, इस भरी दोपहर मे,

चहक रही हैं जैसे कोयल, गुनगुनाने की भी आवाज है,

मिलन की चाह लिये कई सपनों का ये आगाज है।


धूप खिली तो फूल भी खिल गए,

वर्षो के बाद जैसे दो दिल मिल गए,

धूप की चमक अब टहनियों को सजाने लगी,

मन की सांसो में भी अब गर्माहट आने लगी ।


सो जायेगी ये शीत पवन, धूप के आशियाने में,

खेल रही है अब मोहब्बत, अपने ही सिरहाने में,

खिली इस धूप का बड़ा ही इंतज़ार था,

सपनों का ये शीशमहल, मेहनत के ही पार था ।


बादल उडे तो खिली धूप भी ढक गयी,

टहनियों की छाल पर कुछ बूँदें गिर गयी,

आसमा में बादलों को अब खुद को पिरोना है,

ज़िंदगी के सफर में जितना हँसना-उतना रोना है।


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