मौन
मौन
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नजर उठी भी नहीं थी कि
वह गुजर गए नज़दीक से
और लग गया दाग दामन पर
जीने का सलीका भी नहीं है
कैसे समझाता था तुम को मैं
मेरी नजर में तुम थे ही कहां
मौन था मैं और तुम गुजर गए
नहीं रहा मतलब कभी तुमसे
मुझे तो नापने थे कदम तुम्हारे
जो बढ़ रहे थे मंज़िल की ओर
तुम्हारी जीत ही मेरा लक्ष्य था
छिप नहीं सकते हैं दाग दामन के
लेकिन ईमानदारी भी कुछ होती है