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Suresh Koundal

Abstract

4.8  

Suresh Koundal

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मैं वक़्त हूँ

मैं वक़्त हूँ

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मैं वक्त हूँ , बलवान और सर्वशक्तिमान हूँ ,

मैं वक्त हूँ ,परिवर्तनशील और गतिमान हूँ ।


कभी अच्छा कभी बुरा,किसी की समझ में न आऊंगा,

एक बार गुज़र गया तो ,लौट कर न आऊंगा ।


मुझे तो खुद ही नही पता, तुझको क्या बताऊंगा,

कि किसको मैं रुलाऊंगा और किसको मैं हँसाऊंगा ।


जिसने मेरा मोल पहचाना, वो मंज़िल की ओर बढ़ चले,

जिसने मेरा किया निरादर, वो पछताये और हाथ मले ।


मैं तो हूँ इक बर्फ का ढेला, पल पल फिसलता जाऊंगा,

जीना है इस पल में जी ले,मैं अगले पल तक रुक न पाऊंगा ।


जैसी होगी तेरी करनी, वैसा ही तू फल पायेगा ,

तेरी क्या औकात है तुझे 'वक्त' ही बतलायेगा ।


तेरे हर कर्म का मैं , निरन्तर हिसाब रखता हूँ ,

न बही खाता न कोई किताब ,बस 'चेहरे' याद रखता हूँ ।


जो जन परिश्रम करे उसे अर्श पर बिठा दूं ,

आलसी ,अभिमानी को इक पल में आईना दिख सकता हूँ ,

मैं फकीर को शहंशाह और शहंशाह को फकीर बना सकता हूँ ।


भिखारी हो या धनवान, मैं किसी के लिए नही रुकता हूँ,

मैं कोई इंसान नही जो गिरगिट के जैसे, पल पल रंग बदलता है ,

मैं वक्त हूँ ... सिर्फ वक्त आने पर ही बदलता हूँ ।।



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