मैं स्त्री हूँ
मैं स्त्री हूँ
मैं स्त्री हूँ, हाँ जी हाँ मैं स्त्री हूँ!
मैं स्त्री हूँ तभी तो तुम पुरुष हो!
अगर स्त्री का स्त्री होना पाप है
तो जग ही बना एक अभिशाप है!
क्यूँ नहीं मानव को मानव की तरह लेते!
क्यूँ आज भी शीर्षक स्त्री पर हैं देते!
क्यूँ आज भी अबला उसे समझा जाता,
फाइटर प्लेन भी जिसे उड़ाना है आता!
हिमालय पर भी है की उसने चढ़ाई,
पग पग है पुरुषों का साथ निभाती!
अपने लिए आज भी नहीं है जीती,
परिवार की रक्षा में बन जाती भित्ति।
जग के निर्माता हैं जो ईश्वर कहलाते,
वो भी अर्द्धनारीश्वर रूप में पूजे जाते!
अगर स्त्री होती वर्चस्व विहीन
तो देवता क्यों ना दिखाते उसे हीन?
ना कोई पूजा होती पूरी कुलदेवी बिन,
ना यज्ञ पूरा होता स्त्री का अधिकार छीन!
हे जग वालों अब तो बदलो अपना व्यवहार,
ताकि हर दिन हो स्त्री जाति के नाम त्योहार।
फिर सभी पीढ़ी गर्व से कह सकेगी यह बात,
मैं स्त्री हूँ ,और स्त्री से ही है जग में दिन- रात!