मैं नहीं जानता
मैं नहीं जानता
नहीं जानते हो
क्या करा बैठे तुम,
बुझ सी गयी थी
जो चिंगारी ,
दबी पड़ी थी राख के ढेर में
क्यों तुमने
उसको हवा दे दी,
छेड़ दिया
मेरे मन वीणा के तारों को।
तुमने जो सुर
सजाए हैं इस पर
वो मुझे रास नहीं आते
तुम चाहते थे
हिडोल बहार
मैं गए रहा था
बिहाग।
फूट पड़ा
इस पर जो दीपक राग,
तुम चले गए दूर।
मैं नहीं जानता
मेघ मल्हार
अब कैसे बुझाऊँ
तन मन की इस जलन को।