मैं मजदूर हूं
मैं मजदूर हूं
मैं हूं मेहनतकश मजदूर,
न ही हूं लाचार न ही मजबूर।
मेहनत ही हमारा भाग्य और ईश्वर,
हम सब फरेब से सदा रहते दूर।
हर निर्माण मे हमारी मेहनत का ही,
हर तरफ दिखलाई देता है असर।
लेकिन समाज को नही है हमारे,
हित सुविधाओ की कोई खबर।
भोजन वस्त्र पढाई और दवाई,
हमसे जुटाए ही नही कभी जुटती।
टपकते छप्पर टूटे खपरैल मे ही,
जीवन की दुखमय अंधेरी रातें कटती।
हमारे परिवार सदा अभावो मे जीते,
भरी पङी चिन्ताएं दुख सभी सुख बीते।
काटता सदा से आगे भी काट लूंगा पर,
खुद्दार हूं करूंगा नही कोई फरेब।
हे पर हक हारी हमारा उचित हक दे दो,
दया मत दिखाओ इसे खुद के लिए रख लो।