मैं लौट आती
मैं लौट आती
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मैं लौट आती
कब से तरस रही थी।
बाहों में समा जाती।
नज़रों को पढ़ना तुमने
सिखा ही नहीं।
जो बात दिल में थी
वो बताई नहीं।
अब धर्म का दामन कैसे छोड़ के आऊँ।
भूल जाओ मुझ को कैसे तुम्हें बताऊँ?