मैं क्या कहूं
मैं क्या कहूं
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उस अधूरी कहानी को क्या नाम दूं
दिल में सुलगे चिंगारी उसे क्या कहूं
मन पंछी सा उड़ता चला चल गया
उसकी दूरी जुदाई को मैं क्या कहूं
पल भर की खुमारी को मैं क्या कहूं
उसकी जादुई निगाहों को मै कहूं।
वक्त के साथ सब तार आेझल हुए
आंखों तक सिमटी तस्वीर का क्या मैं करूं
उलझनों में उलझती मैं रह गई
बिन कहे उससे, खुद से मैं क्या कह गई
आग सी लौ उठी दिल में और बुझ गई
बेसुध हो गई मैं चुप रह गई।।
उस अधूरी कहानी में मैं बह गई।।