मैं हूँ....?????
मैं हूँ....?????
तुम कहते हो कि मैं परायी हूँ l
जिसने जनम दिया,
वो कहते हैं परायी हूँ l
जिसने अपनाया है,
वो भी कहते हैं कि परायी हूँ l
तो पूछती हूँ मैं तुमसे, बताओ !
फ़िर किसकी "अपनी" ,कहाँ से आई हूँ मैं?
तुम कहते हो कि मैं पराए घर की हूँ l
एक ने कहा उस घर की है,वही जाना है
उन्होने कहा दूसरे घर से आई है l
तो पूछती हूँ मैं तुमसे ,बताओ !
फ़िर "कौनसा घर" है,मेरा किस घर की हूँ मैं ?
तुम कहते हो कि हक नहीं है मेरा l
भाई कहता है कि जाओ!
यहाँ हक है मेरा l
पति कहता है कि बताओ !
कुछ लाई भी हो,जो है तेरा
जो भी है, सबकुछ है मेरा l
तो पूछती हूँ मैं तुमसे, बताओ!
किसपर जताऊँ, कौनसा हक है मेरा l
अभी तो तुमसे किए हैं,चंद सवाल मैंने l
जवाब तो माँगे ही नहीं, कभी !!
दो कुलों की कहलाती हूँ ,
दोनों को सींचती,सवाँरती हूँ l
नींव का पत्थर हूँ तुम्हारे घर का ,
जो हिल गया तो, सब ढह जायेगा l
एक बार बेगानी हो गई ना, तो बताओ!
बिना नींव का घर कैसे बनाओगे ??
मेरे काँन्धे पर, जो दोनों घरों की "इज्ज़त" है l
यदि मैंने ना सँभाली, तो इज्जत कैसे बचाओगे ??
मुझे अपनाकर भी,मुझसे सवाल करते हो,सोचो !
यदि मैंने नहीं अपनाया तो, अपना कुल कैसे बढ़ाओगे ??
चुप हूँ,मेरी चुप्पी को कमजोरी ना समझना,समर्पण है मेरा,
क्योंकि हक माँगने पर आई तो,ये दुनिया ही हिल जायेगी l