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Surendra kumar singh

Abstract

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Surendra kumar singh

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मैं हूँ

मैं हूँ

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ये जीवन है, ये उसका एहसास है और मैं हूँ

गम का दरिया है,ये खुशी की नाव है और मैं हूँ


 बात करो ,खामोश रहो तुम्हारी अपनी अदा है

जमीन है आकाश है,हवा की दीवार है और मैं हूँ

 

हो ,और जरुरत हो अपनी,तो मिल लो खुद से

बरसात का मौसम है, बाढ है सूखा और मैं हूँ


तुम हो ,तुम्हारी बलायें हैं ,तुम्ही टाल सकते हो,

मौज है,मस्ती है,,तुम्हारा एहसास है और मै हूँ


चाहते हो,ढूंढते हो खुदा को तो मिल लो खुद से

दुनिया, सूरज है हवा है समय है और मैं हूँ।


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