मैं हार रहा हूँ हर सपना
मैं हार रहा हूँ हर सपना
मैं हार रहा हूं हर सपना
संवाद नहीं अब रातों से
जो बीत रहा यह रात अभी
वह बीता बीता बात लगे
जो पूरा चंदा नभ में था
वह आधे होता डूब रहा
मानो जैसे खुश आंगन से
उमंग, उत्साह सब छीन रहा
मैं हार रहा हूं हर सपना
शायद उसको भी मालूम हो
जो चाँद को अपना इश्क़ कहे
क्या होता है सपना अपना
जब सपना कोई और बने
तब दिल का चंदा ऐसे ही
घटता घटता डूब जाता है
जो चमक रहा था खूब यहां
वह धीरे-धीरे खो जाता है
तब रातों से कहता हारा मन
मैं हार रहा हूं हर सपना